यह ज्ञान युद्ध है
पत्थर बुद्धि
मानव, जो स्वयं को, जानता नहीं, वो भगवान की बाते करता है, कहता है, कण कण में भगवान
है, कुत्ते बिल्ली में भी है, जब कोई उसे, कुत्ता कहता है, तो कहने वाले का, गला पकड़
लेता है, और भूल जाता है कि, कुत्ते में भी भगवान है, अरे मुर्ख इंसान, परमात्मा, परम
धाम का वासी है, उसके लिए ही कहते है, ऊँचे ते ऊँचा, तेरा नाम, ऊँचे ते ऊँचा तेरा धाम
!
सोचने की बात है कि, परमात्मा यदि, सर्व व्यापी
है तो, फिर अवतरित कौन होता है ? गीता ज्ञान कौन देता है ? जब गीता ज्ञान दिया जा रहा
था, तब धर्म रक्षा का नारा, देने वाले धर्माचार्य तो, अधर्म पक्ष में खड़े थे, जब इन्होने
गीता ज्ञान सुना नहीं, परमात्मा को पहचाना नहीं, जाना नहीं, तो बिना जानकारी के, परमात्मा
को कुत्ते बिल्ली में कहना, महामूर्खता ही नहीं, महापाप भी है !
ध्यान रहे, धर्म ग्लानि है तो, परमात्मा भी होंगे,
परमात्मा होंगे, तो पांडव भी होंगे, वही पांडव, जिनसे महाभारत में, आपका सामना हुआ
था, महाभारत कोई हिंसक युद्ध नहीं था, ज्ञान युद्ध था, धर्म युद्ध था, इस धर्म युद्ध
में, विजय किसकी होती आई है, किसकी होगी, यह पूरा विश्व जानता है, अब भी जानेगा !
अर्जुन
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