गुरु शब्द के अर्थ का, अनर्थ किया है!
पत्थर बुद्धि मानव ने, गुरु शब्द के अर्थ का, अनर्थ किया है! कहता है, गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु,गुरु ही साक्षात महेश्वर है! इतने पर भी, जब इनका मन नही भरा, तो कहने लगे कि, गुरु तो परमात्मा से भी बड़ा है! वाह रे, मानव वाह! ऐसा कहते हुए, न तो तुम्हे लज्जा आई, न तुम्हारी जुबान लड़खड़ाई, और न ही, तुम्हे तुम्हारी औकात नजर आई,
कहाँ वो सर्व शक्तिमान परमात्मा, दुःख हर्ता सुख करता परमात्मा, मुक्ति जीवन मुक्ति का दाता परमात्मा, तीनो लोको और तीनो कालो को जानने वाला परमात्मा, देवो के भी देव और कालो के भी काल परमात्मा, ऐसे समर्थ परमात्मा के सामने, विनाश काले विपरीत बुद्धि मानव, अपने आपको को देख और पूछ अपने आप से, अपने को कहाँ खड़ा पाता है, और कहा खड़ा है?
अपने को परमात्मा से बड़ा कहने अथवा समझने वाले तुच्छ बुद्धि मानव, नादान एवम अज्ञानी मानव, तुझ में रत्ती भर भी शर्म बची हो, तो अपनी भूल सुधार कर, उस भोले नाथ से, जगत के पालन हार से, क्षमा मांग लो, वरना खून के आंसू बहाने के लिए तैयार रहो, और याद रखो, भोला नाथ भोला जरूर है, लेकिन जब यही भोला, बम-बम करने लगता है, तो धरती काँप उठती है! जब धरती काँप उठती है, तो दुनिया त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगती है! और अपने को, परमात्मा से भी बड़ा, बताने वाले अहंकारी पुरुष भी, बदहवास हो कर, इधर-उधर भागने लगते है! थर-थर कांपने लगते है! अर्जुन
No comments:
Post a Comment